00 जिनमें कुछ कर गुजरने का जज्बा.. वही लाते हैं बदलाव
चंडीगढ़ पीजीआई के भार्गव ऑडिटोरियम में आयोजित 'नज़रिया- जो जीवन बदल दे' कार्यक्रम में अपने अनुभव साझा करते आनंद मलिगावद
  Start Date: 17 Sep 2019
  End Date: 17 Sep 2019

फलक को जिद है जहां बिजलियां गिराने की, हमें भी जिद है वहीं आशियां बनाने की.. नवाचारी शिक्षक सोनम वांगचुग के सुनाए इस शेर ने मंगलवार, 17 सितंबर को चंडीगढ़ में आयोजित नज़रिया कार्यक्रम के चारों वक्ताओं के जीवन, कर्म और उनके वक्तव्य का सार समेट दिया। अमर उजाला फाउंडेशन की ओर से चंडीगढ़ के पीजीआई स्थित भार्गव आडिटोरियम में आयोजित ‘नजरिया- जो जीवन बदल दे’ में सोनम वांगचुग, आनंद मलिगावद, मोटीवेशनल स्पीकर विवेक अत्रे और फिल्म निर्माता संजय राउतरे ने ट्राईसिटी के युवाओं, एंटरप्रेन्योर, महिलाओं और बच्चों को नई लीक बनाने के हौसले वाले अनुभवों से सराबोर कर दिया।

चंडीगढ़ के पीजीआई आडिटोरियम में आयोजित इस कार्यक्रम के दौरान पंजाब के मुख्यमंत्री के प्रतिनिधि के तौर पर आए पंजाब के पीडब्लूडी और शिक्षा विभाग के मंत्री विजय इंदर सिंगला, पंजाब के मुख्यमंत्री के मीडिया एडवाइजर रवीन ठुकराल मौजूद रहे। 

सोनम वांगचुग ने अपने जीवन की यात्रा के उदाहरणों से मौजूदा शिक्षा नीति पर बेहद रोचक ढंग से तीखी चोट की। इस मौके पर बंगलूरू की गायब होती झीलों को एक बेजोड़ तरीके से नया जीवन देने वाले आनंद मलिगावद ने कहा कि यदि कोई प्रकृति को समझकर और उससे जुड़कर बदलाव लाना चाहे तो उसके लिए यह असंभव नहीं है।

फिल्म निर्माता संजय राउतरे ने कहा कि जब उन्होंने अपनी शुरुआत की तो उस समय लोगों ने आलोचना की, कईयों ने तो हताश करते हुए यह तक कहा कि आप हमको पैसा दें हम उसको डबल करके देंगे पर आज बदलाव सामने है। आनंद मलिगावद ने कहा कि उनको झील से बचपन से प्यार था। झील, गांव की मिट्टी और ग्रामीणों के साथ जीने से मिली समझ ने ही गांव के इस गंवार को देश दुनिया में जाकर झीलों को नया जीवन देने की तकनीक बताने वाला बना दिया।

कैप्टन बोले, नजरिया बदल देगा नजरिया
पंजाब के पीडब्लूडी और शिक्षा विभाग के मंत्री विजय इंदर सिंगला ने पंजाब मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह द्वारा भेजे गए संदेश को पढ़ा, जिसमें कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अमर उजाला फाउंडेशन के नज़रिया प्रोग्राम को बेहतरीन शुरुआत बताते हुए कहा कि यदि कोई सही दिशा में कार्य कर रहा है तो उसके लिए मुश्किलें खुद ब खुद आसान हो जाती हैं।

कैप्टन ने अपने ट्वीट में कहा कि वास्तव में यह एक लीक से हटकर प्रयास है। इस कार्यक्रम के माध्यम से कई क्रांतिकारी और रचनात्मक बदलाव आएंगे। उन्होंने कहा कि वास्तव में नजरिया के माध्यम से अमर उजाला ऐसे सफल और लीक से हटकर जीने वाले लोगों को सामने ला रहा है जो कि आम जनता और युवाओं को भविष्य में एक नए बदलाव की ओर ले जाएंगे।

पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने संदेश में कहा कि उन्होनें थ्री इडियट्स मूवी देखी थी और उसके साथ ही उन्होंने शिक्षा में कई बदलाव भी किए। उन्होंने लिखा था कि इसके बाद जब वह सत्ता में आए तो उस दौरान उन्होंने पंजाब के स्कूलों को स्मार्टर बना दिया। उन्होंने अपने संदेश में लिखा कि अध्यापकों द्वारा पढ़ाने के सिस्टम में भी बदलाव किया गया और उसका नतीजा है कि अब कई अच्छे परिणाम सामने आ रहे हैं।

‘नजरिया जो जीवन बदल दे’ कार्यक्रम में प्रसिद्ध लेक रिवाइवर आनंद मलिगावद ने झीलों के डंपिंग बनने और इससे खड़ी हुई पानी की समस्या से रूबरू कराते हुए बिना सरकारी मदद के खुद से बंगलूरू में चार नई झीलों के निर्माण की अपनी उपलब्धि को बेहद रोचक अंदाज में बताया। वहीं, नवाचारी शिक्षक एवं नवोन्मेषक सोनम वांगचुक ने वर्तमान शिक्षा प्रणाली पर सवाल उठाते हुए बच्चों को खेल-खेल में पढ़ाने के फार्मूले को अपनाने की बात कही। वहीं, मोटिवेशनल स्पीकर विवेक अत्रे ने जीवन में चुनौतियों को सकारात्मक रूप से लेकर सफलता प्राप्त करने और ईश्वर में आस्था बनाए रखने की सलाह दी जबकि चौथे वक्ता फिल्म निर्माता संजय राउतरे ने अपनी जिंदगी के अनुभव साझा करते हुए सफलता के लिए लगातार संघर्ष करते रहने को प्रेरित किया।

लेक रिवाइवर आनंद मलिगावद ने कहा कि एक वक्त था जब हम मेहनत करके कुएं और झील से पानी लाकर पीते थे। तब हम सोच-समझकर जरूरत के हिसाब से पानी का इस्तेमाल करते थे लेकिन धीरे-धीरे झीलें गंदी हो गईं और कुएं सुख गए। इसके बाद बोरिंग कर हमने जमीन से पानी निकालना शुरू किया। आसानी से पानी मिलने लगा तो हमने उसका दोहन शुरू कर दिया, लिहाजा भूमि का जलस्तर लगातार गिरता गया। अब हालात यह हैं कि बोतलबंद पानी खरीदकर पीना पड़ रहा है। एक समय था जब बंगलूरू में करीब एक हजार झीलें होती थीं और बंगलूरू को लेक सिटी कहा जाता था लेकिन अब सिर्फ 81 बची हैं और उनकी भी हालत बदतर है।

बंगलूरू में अब डेढ़ हजार फीट में जाकर पानी मिलता है। मलिगावद ने बताया कि वह एक गांव से हैं। उनका बचपन झील के पास बीता है। इसलिए उन्हें झील से प्यार था। पढ़ाई कर वह इंजीनियर बने और एक मल्टीनेशनल कंपनी सनसेरा इंजीनियरिंग लिमिटेड में काम करने लगे। इसी बीच जब उन्होंने झीलों की बदहाली देखी तो तय कर लिया कि झीलों के लिए कुछ करेंगे। इसके लिए उन्होंने पुरानी झीलों को साफ करने की जगह नई झीलें बनाने का बीड़ा उठाया। इसके बाद एक के बाद एक चार झीलें बना डालीं। वह भी बेहद कम लागत और समय में। सबसे पहले 36 एकड़ में क्यालसनहल्ली लेक तैयार की। इसके बाद वाबसंद्रा लेक, कोनसंद्रा लेक, गवी लेक बनाईं। उन्होंने बताया कि झील निर्माण में उन्होंने प्रकृति को समझा और उसके मुताबिक ही झील तैयार की। मसलन, उन्होंने जो मिट्टी निकाली, उससे झील के बीच में आईलैंड तैयार किए। उन आईलैंड में पौधे लगाए। झील में सांप, मछली आदि डाले, जिससे झील का पानी साफ रहे। उसके साथ ही 15 किस्म के फलों के पौधे लगाए।

उन्होंने कहा कि कर्नाटक के मंत्री तक को उन्होंने उसी झील का पानी पिलाया और उन्होंने गांरटी ली कि उनको कुछ नहीं होगा। उन्होंने कहा कि वह तो एक गांव वाले हैं और जो स्थिति देखी है उससे ऐसा लगता है कि एक समय ऐसा आने वाला है कि पानी खत्म हो जाएगा। इसी वजह से उनका टारगेट है कि 45 दिन में लेक को रिवाइव करेंगे। उन्होंने बताया कि उनका टारगेट रहता है कि दो माह के भीतर एक लेक को रिवाइव करें।

सुखना का पानी बहुत साफ, यह आपकी जिम्मेदारी है कि इसे ऐसे ही रखें आनंद ने कहा कि वह चंडीगढ़ आए तो उन्हें काफी अच्छा लगा। यहां की हरियाली कमाल की है लेकिन जिस तरह से इस शहर में कारों की संख्या बढ़ रही है, एक दिन यह शहर भी बंगलूरू बन सकता है। ऐसे में यह इस शहर के लोगों की जिम्मेदारी है कि वह यहां की हरियाली और प्रकृति के उपहारों को सुरक्षित रखें। उन्होंने कहा कि सुखना लेक भी उन्होंने देखा। सुखना का पानी बहुत साफ है। यह देख उन्हें बेहद खुशी हुई। जरूरत है सुखना को ऐसे ही बचाए रखने की। उन्होंने चंडीगढ़ में मौजूद साइकिल ट्रैक की भी सराहना की। कहा कि देश का यह एकमात्र शहर है जहां साइकिल ट्रैक है। लोगों को इसका लाभ उठाना चाहिए। साइकिल चलाइए और स्वस्थ्य रहिए।

तो टैबलेट खाएंगे आप भी

आनंद ने पानी की समस्या पर कटाक्ष करते हुए कहा कि जिस प्रकार से पानी की किल्लत हो रही है, समय ज्यादा दूर नहीं जब लोग सुबह एक टेबलेट खा लेंगे और दिन भर पानी पीने से मुक्ति मिल जाएगी। खाने के लिए टेबलेट, पीने के लिए टेबलेट और सोने के लिए टेबलेट। जब टेबलेट ही लेना है तो जी कर क्या करेंगे।

शिक्षा नीति तो बेहतर कीजिए जनाब

नवाचारी शिक्षक और नवोन्मेषक सोनम वांगचुक ने कहा कि वर्तमान शिक्षा नीति फेल है या हमारे बच्चे। मेरे सामने यह बड़ा सवाल था। क्योंकि लद्दाख में एक वक्त ऐसा था जब 100 में से केवल 5 बच्चे पास होते थे। मैंने पाया कि बच्चों में कोई कमी नहीं थी। कमी थी हमारी शिक्षा प्रणाली में। लद्दाख के बच्चों को उस भाषा, उस प्रणाली में शिक्षा दी जा रही थी, जो उनकी म्रातृभाषा नहीं थी। लद्दाखी छोड़कर उन्हें उर्दू और इंग्लिश में पढ़ने को मजबूर किया जा रहा था। मैंने इस पर काम किया। सरकार के साथ मिलकर पाठ्यक्रम में बदलाव कराया। नतीजा सबके सामने है। आज लद्दाख में 100 में से 70 बच्चे पास होते हैं। उन्होंने अपनी कहनी बताते हुए कहा कि वह भी पढ़ाई में बेहद कमजोर थे। ऐसे में टीचर अक्सर क्लास के बाहर खड़ा कर देते थे लेकिन आज मैं यह कह सकता हूं कि उस क्लास में मैं ही आउट स्टैंडिंग स्टूडेंट था।

वांगचुक ने कहा कि शिक्षक के बगैर कुछ नहीं सीखा जा सकता। उन्होंने कहा कि ज्यादातर देशों की पढ़ाई उनकी अपनी भाषा में होती है पर अपने देश में ऐसा नहीं है। लद्दाख के स्टूडेंट्स को यदि उर्दू में समझाएंगे तो उनकोे क्या समझ में आएगा। उन्होंने कहा कि उनकी रुचि प्रकाश में थी तो इंजीनियरिंग कालेज में पहुंच गए। उन्होंने कहा कि अपनी शिक्षा पूरी करने के लिए उन्होंने पढ़ाना शुरू किया। वहीं से उनको काफी कुछ समझ में आया कि ज्यादातर बच्चों की समस्या है भाषा। उनको जब अध्यापक की भाषा तक समझ नहीं आएगी और रोचक ढंग से पढ़ाई नहीं होगी तो वह कैसे समझेंगे। केवल रट्टा मारने से हम रट्टू तोता ही बनेंगे योग्य नहीं। इसलिए प्रैक्टिकल नॉलेज बेहद जरूरी है। इसी को देखते हुए उन्होंने लद्दाख में स्कूल खोला, जिसमें केवल फेल होने वालों को एडमिशन मिलता है। इस स्कूल को बच्चों ने ही अपनी रुचि से बनाया और संचालन भी खुद वही करते हैं। उन्होंने बताया कि इस स्कूल की सबसे बड़ी सजा है एक या दो दिन की छुट्टी।

शिक्षा नहीं यह तो नकल है

सोनम वांगचुक ने कहा कि वास्तव में जो शिक्षा लद्दाख में दी जा रही थी तो उसके बारे में पता किया तो पता चला कि वह कश्मीर का कापी पेस्ट है। कश्मीर की शिक्षा पता की तो पता चला कि यह नई दिल्ली से आई है, नई दिल्ली की पता किया तो पता चला कि यह तो लंदन की कापी है और कमाल की बात यह है कि लंदन में भी जो बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं, वह उनकी नहीं है। सालों पुराने ढर्रे पर एक ही नीति से दी जा रही शिक्षा हमें कामयाब नहीं बना सकती। सोनम वांगचुक ने कहा कि वास्तव में अब एजूकेशन नीति को बदलने की आवश्यकता है और शिक्षकों की ट्रेनिंग भी आवश्यक है। उन्होंने शिक्षा तो एकदम प्रेक्टिकल होनी चाहिए। जिसमें बच्चे सीधे हर बात को समझ लें। जैसे बिल्ली अपने बच्चों को शिकार करने की ट्रेनिंग देती है। उन्होंने कहा कि उन्होंने नौ भाषाएं सीख ली हैं।

सफलता के लिए आत्मविश्वास और प्रेजेंस आफ माइंड बेहद जरूरी

मोटिवेशनल स्पीकर विवेक अत्रे ने कहा कि आपके अंदर आत्मविश्वास व प्रेजेंस आफ माइंड का होना बेहद आवश्यक है। इसको लेकर उन्होंने एक कहानी सुनाई। कहा कि साइंटिस्ट अल्बर्ट आइंस्टीन जब व्याख्यान देने यूनिवर्सिटी और कालेज में जाते तो उनका ड्राइवर भी साथ रहता। एक दिन जब आइंस्टीन किसी कालेज में व्याख्यान देने जा रहे थे तो ड्राइवर ने कहा कि ‘सर, मैंने आपके इतने लेक्चर सुन लिए हैं कि वह मुझे याद हो चुके हैं और आज मैं आपकी जगह लेक्चर देना चाहता हूं।’ आइंस्टीन यह सुनकर खुश हुए और कहा ठीक है। चूंकि आइंस्टीन को किसी ने देखा नहीं था तो ड्राइवर ने आइंस्टीन बनकर कॉलेज में एक घंटे तक लेक्चर दिया और कहीं भी कोई चूक नहीं हुई। लेकिन लेक्चर के बाद एक प्रोफेसर ने उनसे एक कठिन सवाल पूछ लिया तो ड्राइवर ने तपाक से कहा यह सवाल तो इतना सरल है कि इसका जवाब मेरा ड्राइवर देगा।

विवके अत्रे ने कहा कि यह कहानी अपने आप में एक बड़ी सीख है कि कैसे आत्मविश्वास और प्रेजेंस आफ माइंड से कोई व्यक्ति सफलता की ऊंचाई प्राप्त कर सकता है। उन्होंने कहा कि कई लोग कहते हैं कि आपने आईएएस की जॉब क्यों छोड़ दी। उन्होंने कहा कि उन्होंने 26 साल नौकरी की और उसको एंज्वाय किया। जब उनको लगा कि वह अपना 100 प्रतिशत नहीं दे सकते तो जॉब छोड़कर मोटिवेशनल स्पीकर बन गए। वास्तव में प्रेरणा कुछ लोगों से मिलती है। किसी क्रिकेटर से, किसी साइंटिस्ट से, किसी फ्रीडम फाइटर से। उन्होंने कहा कि जिंदगी में हमेशा सकारात्मक सोच रखनी चाहिए।

हर सफल इंसान के पीछे वर्षों का संघर्ष होता है, सफलता एक दिन में नहीं मिलती

फिल्म निर्माता संजय राउतरे ने कहा कि जब वह मकड़ी फिल्म बनाने जा रहे थे तो उनके कुछ ज्वेलर दोस्तों ने कहा कि बच्चों की फिल्म बनाकर क्या मिलेगा। ऐसा करो जो पैसा फिल्म में लगा रहे हो, उसे हमें दे दो, डबल करके तुमको दे देंगे। राउतरे ने कहा कि हम जब भी कोई नई चीज करते हैं या लीक से हटकर काम करते हैं तो कई लोग आपको हताश करते हैं, लेकिन हताश होने की जगह आपको अपने काम में जुटे रहना चाहिए। संघर्ष करते रहना चाहिए क्योंकि संघर्ष के बाद ही सफलता का सुख आपको मिलेगा। उन्होंने एक किस्सा बताते हुए कि कि मकड़ी फिल्म उन्होंने पहले एक संस्था के लिए बनाई थी लेकिन संस्था ने फिल्म देखकर उसे रिजेक्ट कर दिया।

इसके बाद उन्होंने यह फिल्म गीतकार गुलजार को दिखाई। गुलजार ने फिल्म देखकर कहा कि ऐसी फिल्म अगले 20 साल में भी बनना नामुमकिन है। इसके बाद वह बाई डिफाल्ट फिल्म के प्रोड्यूसर बने। उन्होंने कहा कि जब उन्होंने फिल्म खोसला का घोसला बनाई तब भी लोगों ने कहा कि यह फिल्म चलेगी नहीं। वह 2 साल तक संघर्ष करते रहे और आखिर में सफलता हाथ लगी। बताया कि फिल्म इंडस्ट्री में एक बार सफलता मिलने का मतलब यह नहीं कि आप सफल हो गए। जब आप नई फिल्म बनाते हैं तो उतना ही संघर्ष फिर करना पड़ता है। फिल्म अंधाधुन की स्टार कास्ट साइन करने में डेढ़ साल लग गए लेकिन आयुष्मान खुराना आए और उन्होंने कहा कि ऑडिशन ले लो। वास्तव में अंधाधुन ऐसी मूवी बनी जिसने एक ही साल में दो अवार्ड जीते। उन्होंने कहा कि सफलता एक दिन में नहीं मिलती। सालों संघर्ष करना पड़ता है।

शहरवासी बोले- नई ऊर्जा के साथ मिली भाषा और प्रकृति के सम्मान की सीख
अमर उजाला फाउंडेशन की ओर से आयोजित ‘नजरिया जो जीवन बदल दे’ कार्यक्रम में पहुंचे दर्शकों के लिए मंगलवार की शाम यादगार बन गई। ट्राइसिटी वासियों की सोच को एक नया नजरिया देने वाले इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने के बाद लोगों के चेहरे खिले हुए थे। उत्साह और चेहरे पर सुकून था। यह तय है कि जो लोग कार्यक्रम में आए थे, वे अब लीक से हटकर सोचने का प्रयास करेंगे और जिंदगी की चुनौतियों को सकारात्मक रूप में लेकर सफलता के नए आयाम तय करेंगे।

कार्यक्रम में मौजूद स्टूडेंट्स और शहरवासियों की राय जानने के लिए उनसे बातचीत की गई। इन लोगों ने बताया कि उन्होंने भाषा और प्रकृति से प्रेम करने का जो नजरिया देखा-सुना वह अद्भुत रहा, वहीं जीवन में चुनौतियों से निपटकर सफलता के शिखर को छूने के अहसास को भी बखूबी महसूस किया। कुल मिलाकर यह कार्यक्रम बेहद ऊर्जा देने वाला रहा। पेश हैं लोगों से बातचीत के अंश।

पूरा कार्यक्रम ही मेरे जैसे युवाओं के लिए प्रेरणा देने वाला रहा। सभी वक्ताओं ने कुछ न कुछ सिखाया लेकिन सबसे महत्वपूर्ण चीज जो यहां से सीखी, वह यह है कि पहले हमें अपनी मातृभाषा और संस्कृति का सम्मान करना होगा। अपनी मातृभाषा से जुड़कर ही हम पूरी दुनिया में अपनी पहचान बना सकते हैं।
नामग्याल, स्टूडेंट, पंजाब यूनिवर्सिटी

आनंद मलिगावद ने मुझे काफी प्रभावित किया। हमें सिर्फ पानी और झील ही बचाने की जरूरत नहीं है। हमें प्रकृति के हर उपहार को सहेजकर रखने और उसका सम्मान करने की जरूरत है। हमें पूरे पर्यावरण को बचाने की जरूरत है। अगर हमने ये नहीं किया तो इसका खामियाजा हम सब को भुगतना पडे़गा। - आशई रफ्तान, स्टूडेंट खालसा कॉलेज

हमारे पूरे सिस्टम का ढांचा ही बदलने वाला है। जैसा कि कार्यक्रम के वक्ताओं ने भी बोला, इसके लिए हम सबको मिलकर प्रयास करना पडे़गा। हमें हर परेशानी के लिए दूसरों को दोष देना बंद करना चाहिए। जब तक हम सब मिलकर प्रयास नहीं करेंगे, किसी भी समस्या से निपटा नहीं जा सकता। - राहुल महाजन, पर्यावरण प्रेमी

आज हमें जरूरत है जल इकट्ठा करने की और पर्यावरण का संरक्षण करने की और इसे बढ़ावा देने की। आने वाले समय में इसकी ही सबसे ज्यादा अहमियत होगी। इसके लिए शहरों की झीलों और गांवों की धरोहरों को जिंदा रखना होगा। हमें प्रकृति से सीखना होगा। उसका सम्मान करना होगा। - प्रदीप त्रिवेणी, पर्यावरण प्रेमी

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