00 अपने दर्द की कसक से संवारी बेटियों की जिंदगी | बड़े बदलाव की छोटी कहानियां

श्रावस्ती के बिशुनापुर रामनगर गांव की आशा देवी आशा सहायिका के रूप में काम करती हैं। बाल विवाह की तमाम तकलीफें खुद पर झेल चुकीं आशा ने अपनी बेटियों का बाल विवाह नहीं होने दिया। उनके अपने जीवन के दर्द और बाल विवाह के खिलाफ उनके संकल्प को जानिए इंटरनेट साथी मीना देवी की इस कहानी में। अमर उजाला फाउंडेशन, यूनिसेफ,  फ्रेन्ड (गूगल से संबद्ध) और जे.एम.सी. के साझा अभियान स्मार्ट बेटियां के तहत बाल विवाह के खिलाफ गांव-गांव में मजबूत हो हो रहे अभियान की बानगी है यह लघु कथा।

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