00 आपदा प्रभावित डेढ़ सौ परिवारों को मिली छत, लौटी खुशियां
तिलवाड़ा के जैली गांव में अपने आश्रय में परिवार के साथ विपिन प्रसाद।

देहरादून। उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदा से प्रभावित परिवारों को फिर से उनके घरों में बसाने का जो बीड़ा अमर उजाला फाउंडेशन ने पिछले साल सितंबर में उठाया था, वह अपने आखिरी पड़ाव पर पहुंच गया है। तीन जिलों के 23 गांवों में बनने वाले 185 अस्थायी आवासों में से 145 से भी अधिक में जिंदगी की खुशियां लौट आई हैं, परिवारों ने उनमें रहना शुरू कर दिया है। इन आश्रयों में रहने वाले कह रहे हैं, आपदा कल की बात हो गयी, अब हमने जिन्दगी की नयी शुरुआत कर ली है।

इसी के साथ अमर उजाला फाउंडेशन ने आपदा प्रभावित इलाकों में डी.आर.डी.ओ. के तकनीकी और हेस्को के सांगठनिक सहयोग से चार स्टील पुल बनाने का भी संकल्प किया है। इस तरह का एक मॉडल पुल देहरादून के हेस्को परिसर में स्थापित हो चुका है। उल्लेखनीय है कि इतने कम समय में इतने आपदा प्रभावितों को सिर के ऊपर छत देने और उनके गांवों को बेहतर संपर्क सुविधा से लैस करने की पहल इससे पहले और किसी संस्था द्वारा नहीं की गई है। अमर उजाला फाउंडेशन की इस पहल का श्रेय उन छह हजार से भी ज्यादा दानदाताओं को जाता है, जिन्होंने पिछले वर्ष की प्राकृतिक आपदा के बाद फाउंडेशन की अपील पर करीब 2.13 करोड़ रुपये दान के रूप में दिए।

गढ़वाल के तीन जिलों, उत्तरकाशी, रूद्रप्रयाग और चमोली के इन 23 गांवों में अमर उजाला फाउंडेशन और देहरादून की संस्था हिमालयन एनवायरमेंटल स्टडीज एंड कंजर्वेशन ऑर्गेनाइजेशन (हेस्को) ने चार स्थानीय एन.जी.ओ. के साथ मिलकर तीन चरणों में 185 आश्रय बनाने का संकल्प लिया था। स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर लाभार्थियों के चयन की प्रक्रिया पूरी करके पहले दो चरणों में 55 आश्रय मार्च 2014 तक बना दिए गए थे। हर घर की लागत 90 हजार रुपये आई और इसमें स्थानीय सामग्री का उपयोग करने के कारण मकान मालिक बनने वाले परिवार को 20-30 हजार रुपये की आय भी हुई है अगर उन्होंने मकान बनाने में खुद मेहनत की और स्‍थानीय निर्माण सामग्री खुद जुटाई। इससे परिवारों को अपनी जिंदगी दोबारा से शुरू करने का आर्थिक आधार मिला।

सितंबर 2013 में अमर उजाला फाउंडेशन ने देहरादून की संस्‍था हिमालयन एनवायरमेंटल स्टडीज एंड कंजर्वेशन ऑर्गेनाइजेशन (हेस्को) के साथ अपने अभियान आश्रय की शुरुआत की थी। उत्तरकाशी, चमोली और रूद्रप्रयाग जिले के पांच गांवों में 5 मॉडल अस्‍थायी आवासों का निर्माण किया गया। जनवरी में दूसरे चरण के तहत 50 अस्‍थायी आवास बनाये गये। इनमें उत्तरकाशी में 10, रूद्रप्रयाग के तिलवाड़ा के जैली गांव में 20, गुप्तकाशी के खुमैरा गांव में 10 और चमोली जिले के नारायणबगड़ ब्लॉक में 10 आवासों का निर्माण हुआ। मार्च माह में तीसरा और आखिरी चरण शुरू करते हुए 130 आवासों के निर्माण का लक्ष्य रखा गया। इसके तहत उत्तरकाशी में 40, रूद्रप्रयाग जिले में 50 और चमोली जिले में 40 अस्‍थायी आश्रय आवासों की नींव रखी गयी।

इस तरह 185 आवासों का लक्ष्य पूरा होने वाला है। अगले एक पखवाड़े में सभी 185 आश्रय बन जाएंगे। आपदा प्रभावित इलाकों में स्थानीय सामग्री से आवास की डिजाइन बनाने के लिए प्रसिद्ध एन.सी.पी.डी.पी. और टार्न की डिजाइन को लोगों ने भी खूब सराहा है। यही वजह है कि अब कई और सामाजिक संगठन भी इस तकनीक को अपनाते हुए आपदा प्रभावित क्षेत्रों में लोगों को आवास देने के लिए आगे आए हैं। निर्माण में सहयोगी रहे स्‍थानीय स्वैच्छिक संगठन जाड़ी (उत्तरकाशी), ग्रास (तिलवाड़ा), स्वराज (गुप्तकाशी) और हरियाली (थराली) भी तय समय में लक्ष्य पूरा करने की ओर बढ़ रहे हैं। उल्लेखनीय है कि स्‍थानीय सामग्री से बनने वाले ये आश्रय हर परिवार के लिए तात्कालिक आजीविका का जरिया भी बने हैं।

उत्तराखंड में अमर उजाला फाउंडेशन की अभूतपूर्व पहल

डी.आर.डी.ओ. की तकनीकी मदद से चार स्टील पुल बनाने का भी संकल्प

आश्रय की कहानियां

आश्रय का निर्माण पूरा होने से लेकर आपदा से संघर्ष तक लाभार्थियों की अपनी- अपनी रोचक कहानियां हैं। ये कहानियां उम्मीद, हौसलों और परिश्रम की मिसाल हैं।

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